Thursday 8 September 2011

जनलोकपाल बिल


'गरीब विरोधी सरकारी लोकपाल बिल' को संसद में आने से रोकें : लोकपाल बिल को संसद में रखे जाने से ठीक पहले अन्ना ने सांसदों को लिखी चिट्ठी
सेवा में,
माननीय सांसद महोदय                          
संसद
नई दिल्ली

विषय:  मंत्रिमंडल द्वारा पारित 'गरीब-विरोधी लोकपाल बिल' को संसद में पेश किए जाने से रोकने हेतु विनम्र निवेदन

आदरणीय सांसद महोदय,
आपमें से बहुत से भाइयों बहनों की तरह मैं भी लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने की दिशा में प्रयासरत हूं. आपमें से बहुतों की तरह मेरे प्रयास भी देश के आम लोगों, गरीब किसानों, मजदूरों, नौकरीपेशा लोगों की समस्याओं  को दूर करने के लिए समर्पित रहे हैं. और आपमें से बहुतों की तरह ही मैंने भी देखा है कि गरीब आदमी किस तरह भ्रष्टाचार की सर्वाधिक मार झेल रहा है.

आम गरीब आदमी के हितों की रक्षा के लिए ही मैंने लोकपाल के लिए बनी साझा ड्राफ्टिंग समिति में शामिल होना स्वीकार किया था. लेकिन मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने जिस लोकपाल बिल को मंजूरी दी है उसमें आम आदमी के भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने वाले अधिकतर मुद्दे नज़र अंदाज़ कर दिए गए हैं.

संसद में इतना कमजोर बिल लाना संसद और सांसद, दोनों का अपमान है, इसमें बहुत से ऐसे मुद्दे हैं ही नहीं जिन पर संसद में बहस होनी चाहिए थी. ऐसे कुछ प्रमुख मुद्दे हैं -

1. आम जनता की शिकायत के  निवारण के लिए एक प्रभावी व्यवस्था - जिसमें तय समय सीमा में किसी विभाग में एक नागरिक का काम न होने पर, दोषी अधिकारी पर ज़ुर्माने का भी प्रावधान है, ताकि गरीब लोगों को भ्रष्टाचार से राहत मिल सके.

2. लोकपाल के दायरे में गांव, तहसील और ज़िला स्तर तक के सरकारी कर्मचारियों को लाना- गरीबों, किसानों, मजदूरों और आम जनता को इन कर्मचारियों का भ्रष्टाचार अधिक झेलना पड़ता है. वैसे भी निचले स्तर के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार को लोकपाल के दायरे में लाए बिना आला अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच करना भी संभव नहीं होगा.

3. केंद्र सरकार के लिए लोकपाल और राज्य सरकारों के लिए लोकायुक्त का गठन इसी कानून के तहत किया जाए. क्योंकि गरीब लोगों का वास्ता राज्य सरकार के कर्मचारियों से ही ज्यादा पड़ता है.

4. लोकपाल के कामकाज को पूरी तरह स्वायत्त बनाने के लिए वित्तीय स्वतंत्रता, सदस्यों के चयन एवं हटाने की निष्पक्ष प्रक्रिया हो.

5. इसी तरह कई और महत्वपूर्ण मुद्दे जिसमें लोकपाल की जवाबदेही बनाए रखते हुए, प्रधानमंत्री, सांसद और न्यायाधीश के भ्रष्टाचार की जांच को लोकपाल के दायरे में लाना, भ्रष्ट अफसरों को हटाने की ताकत लोकपाल को देने के मामले भी शामिल हैं.

लोकपाल के बारे में मुद्दे तो बहुत से हैं लेकिन मैं यहां विशेष रूप से भ्रष्टाचार के चलते गरीब आदमी की बदहाली की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं. सरकार ने जो लोकपाल  बिल तैयार किया है उसमें गरीब आदमी को भ्रष्टाचार से राहत दिलवाने का कोई इंतज़ाम है ही नहीं.

अगर सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती है तो मैंने 16 अगस्त से अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठने का ऐलान किया है. मेरा यह उपवास संसद के विरोध में नहीं बल्कि सरकार के कमजोर बिल के विरोध में होगा.

मैं उम्मीद करता हूं कि देश की संसद अपनी परंपरा और दायित्वों का निर्वाह करते हुए ऐसे गरीब विरोधी बिल को संसद में आने से रोकेगी.

सरकारी लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल के अंतर का तुलनात्मक विवरण आपके  संदर्भ हेतु इस पत्र के साथ संलग्न कर भेज रहा हूं.

भवदीय                                                                दिनांक: 2 अगस्त 2011

किशन बाबूराव हज़ारे (अन्ना हज़ारे)


Wednesday 7 September 2011

----द ग्रेट चौहान----


सोमनाथ मन्दिर को खंडित कर गुजरात से लौटती अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर जालौर के शासक कान्हड़ देव चौहान ने पवित्र शिवलिंग शाही सेना से छीन कर जालौर की भूमि पर स्थापित करने के उदेश्य से सरना गांव में डेरा डाली शाही सेना पर भीषण हमला कर पवित्र शिवलिंग प्राप्त कर लिया और शास्त्रोक्त रीती से सरना गांव में ही प्राण प्रतिष्ठित कर दिया |मुंहता नैन्सी की ख्यात के अनुसार इस युद्ध में जालौर के राजकुमार विरमदेव की वीरता की कहानी सुन खिलजी ने उसे दिल्ली आमंत्रित किया | उसके पिता कान्हड़ देव ने अपने सरदारों से विचार विमर्श करने के बाद राजकुमार विरमदेव को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया जहाँ खिलजी ने उसकी वीरता से प्रभावित हो अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार विरमदेव के सामने रखा जिसे विरमदेव एकाएक ठुकराने की स्थिति में नही थे अतः वे जालौर से बारात लाने का बहाना बना दिल्ली से निकल आए और जालौर पहुँच कर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया |
मामो लाजे भाटिया, कुल लाजे चव्हान |जो हूँ परणु तुरकड़ी तो उल्टो उगे भान ||
शाही सेना पर गुजरात से लौटते समय हमला और अब विरमदेव द्वारा शहजादी फिरोजा के साथ विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के कारण खिलजी ने जालौर रोंदने का निश्चय कर एक बड़ी सेना जालौर रवाना की जिस सेना पर सिवाना के पास जालौर के कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर एक साथ आक्रमण कर परास्त कर दिया | इस हार के बाद भी खिलजी ने सेना की कई टुकडियाँ जालौर पर हमले के लिए रवाना की और यह क्रम पॉँच वर्ष तक चलता रहा लेकिन खिलजी की सेना जालौर के राजपूत शासक को नही दबा पाई आख़िर जून १३१० में ख़ुद खिलजी एक बड़ी सेना के साथ जालौर के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर हमला किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया जिससे वहां पीने के पानी की समस्या खड़ी हो गई अतः सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया जिसके तहत उसकी रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीरों ने शाका कर अन्तिम युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की |इस युद्ध के बाद खिलजी अपनी सेना को जालौर दुर्ग रोंदने का हुक्म दे ख़ुद दिल्ली आ गया | उसकी सेना ने मारवाड़ में कई जगह लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया |
 इस अत्याचार के बदले कान्हड़ देव ने कई जगह शाही सेना पर आक्रमण कर उसे शिकस्त दी और दोनों सेनाओ के मध्य कई दिनों तक मुठभेडे चलती रही आखिर खिलजी ने जालौर जीतने के लिए अपने बेहतरीन सेनानायक कमालुद्दीन को एक विशाल सेना के साथ जालौर भेजा जिसने जालौर दुर्ग के चारों और सुद्रढ़ घेरा डाल युद्ध किया लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी कमालुद्दीन जालौर दुर्ग नही जीत सका और अपनी सेना ले वापस लौटने लगा तभी कान्हड़ देव का अपने एक सरदार विका से कुछ मतभेद हो गया और विका ने जालौर से लौटती खिलजी की सेना को जालौर दुर्ग के असुरक्षित और बिना किलेबंदी वाले हिस्से का गुप्त भेद दे दिया | विका के इस विश्वासघात का पता जब उसकी पत्नी को लगा तब उसने अपने पति को जहर देकर मार डाला | इस तरह जो काम खिलजी की सेना कई वर्षो तक नही कर सकी वह एक विश्वासघाती की वजह से चुटकियों में ही हो गया और जालौर पर खिलजी की सेना का कब्जा हो गया | खिलजी की सेना को भारी पड़ते देख वि.स.१३६८ में कान्हड़ देव ने अपने पुत्र विरमदेव को गद्दी पर बैठा ख़ुद ने अन्तिम युद्ध करने का निश्चय किया | जालौर दुर्ग में उसकी रानियों के अलावा अन्य समाजों की औरतों ने १५८४ जगहों पर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर जौहर किया तत्पश्चात कान्हड़ देव ने शाका कर अन्तिम दम तक युद्ध करते हुए वीर गति प्राप्त की |कान्हड़ देव के वीर गति प्राप्त करने के बाद विरमदेव ने युद्ध की बागडोर संभाली |
विरमदेव का शासक के रूप में साढ़े तीन का कार्यकाल युद्ध में ही बिता | आख़िर विरमदेव की रानियाँ भी जालौर दुर्ग को अन्तिम प्रणाम कर जौहर की ज्वाला में कूद पड़ी और विरमदेव ने भी शाका करने हेतु दुर्ग के दरवाजे खुलवा शत्रु सेना पर टूट पड़ा और भीषण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ | विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की धाय सनावर जो इस युद्ध में सेना के साथ आई थी विरमदेव का मस्तक काट कर सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई | कहते है विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सम्मुख लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया तब फिरोजा ने अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाई..